Friday, August 10, 2012

बहिष्कृत..


बहिष्कृत

मेरी मानो,
तुम अपने सत्य को कुछ ऊंचे पर खड़े होकर,
जोर जोर से चिल्लाओ,
भीड़ रुक जायेगी,
शोर थम जाएगा,
लोगों को  आदत है,
वे चिल्लाकर कहे गए को ही सत्य मानते हैं,
वे ऊब चुके हैं उस सत्य से,
जो धीरे से कहा जाता है,
जिसके पीछे कोई ताकत नहीं,
सत्ता की, साधन की, धन की,    
वे तुम्हारी बात को सत्य मान लेंगे,
मैं,
मुझसे न डरो,
मैं किसी से नहीं कह पाऊँगा,
तुम झूठ बोल रहे हो ,
क्योंकि सत्य के माफिक,
मैं भी बहिष्कृत हूँ ,
तुम्हारे समाज से ,

अरुण कान्त शुक्ला
8अगस्त,2012

2 comments:

  1. आपकी रचना बहुत अच्छी लगी ।

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत धन्यवाद रमेश भाई ..

    ReplyDelete