Wednesday, December 31, 2014

फिर कैसी आजादी का वो संघर्ष है,

वक्त की गणना के 365 दिन और पूर्ण हुए,
अच्छे गए या बुरे गए,
दोनों में इन 365 दिनों का कोई दोष नहीं,  
आज जो हम काट रहे हैं,  
पहले कभी हमने ही बोया होगा,  
हमने नहीं तो, जो हमारे साथ मिलकर काट रहे हैं,  
उनने कभी बोया होगा,


तुम्हारा नाम राम है,  
तुम्हारा चेहरा अलग है,  
उसका नाम राम है,  
उसका चेहरा तुमसे अलग है,  
उस तीसरे का भी नाम राम है,  
उसका चेहरा भी तुमसे अलग है,
फिर, रहीम का चेहरा तुमसे कैसे मिलेगा?


हम तो कभी का छोड़ चुके,
वायदों का हिसाब रखना,
जो उधार कभी वापस न मिले ,
उसको खाते में लिख कर क्या रखना?
हमें जानकर गलीबल
रोज नए शगूफे छोड़ो,
रोज नए सपने गढ़ते जाओ,
उन्होंने 60 साल कुछ न किया,
अब आप, सफाई से लेकर मेक इन इंडिया तक,
सब हमसे करवाओ,


सुनो, उनकी बात सुनो,  
जवानी जाने के पहले
बहुत कुछ करना है
टोना, टोटका, बेगा, तांत्रिक बनकर,
विश्व को शिक्षा देना है,
पर, उसके पहले जो हुआ नहीं देश में उस इतिहास को गढ़ना है,
राम, कृष्ण, बुद्ध, विवेकानंद और परमहंस के देश में,
एक हत्यारे का मंदिर भी तो बनना है,


निकाल दो स्वतंत्रता के संघर्षों को,  
इतिहास और पाठ्य पुस्तकों से,
भूल जाओ आम्भी, सांगा की मीराजाफरी
और भर दो पुस्तकों को,
गौरी, लोधी और खिलजी,बाबर के साथ हुए युद्धों से,
19वीं और 20वीं शताब्दी का आजादी के लिए किया गया,

सत्याग्रह भी कोई संघर्ष है
न उससे उन्मांद जागता है
न उसमें कोई हिन्दुतत्व है,  
फिर कैसी आजादी का वो संघर्ष है,


अरुण कान्त शुक्ला,
31/12/2014