Tuesday, August 7, 2012

हमारे हिस्से ..!


हमारे हिस्से..!

जिन्हें दिख रहीं हैं आज सारी गडबडियां,
दौलत उनके पास भरमार है,
सारे चने उनके हैं,
हमारी तो केवल भाड़,

कालाधन/मंहगाई,भुखमरी/भ्रष्टाचार, ढेर सारी हैं सीढियां,
हाथ में झंडे लिए वो चढ़ने हैं तैयार,
नारे सारे उनके हैं,
हमारी तो केवल आड़,

चार बांस, चौबीस गज, ता ऊपर हैं रंगरेलियां,
मंहगे जीवन, मंहगी मौतें, धरा पर भरमार,
सबसीडी सारी उनको है,
हमें तो केवल झाड़,

उनके सब रंगों में हैं रंगीनियाँ ,
फीके पड़ गए हैं हमारे त्यौहार,
उनके हिस्से चली गईं हैं सारी खुशियाँ,
कहे आदित्य”, रोओ धाड़ मार,                                                   

अरुण कान्त शुक्ला 
 7 अगस्त,2012

No comments:

Post a Comment