Monday, August 28, 2017

तुम्हारी मन की बात पर

तुम्हारी मन की बात पर

प्रश्न सारे उठाकर रख दो ताक पर
जिसे जबाब देना है 
उसकी औकात नहीं जबाब देने की
पथ केवल एक ही शेष 
ठान लो मन में 
बाँध लो मुठ्ठियाँ
निकल पड़ो
ख़ाक में उसे मिलाने
जो चुप रहता है हर बवाल पर
उसकी कोई औकात नहीं   
प्रश्न उठाने की 
हमारे इस जबाब पर,

अच्छी नहीं हिंसा
आस्था के सवाल पर,
सुनते सुनते कान पाक गये
बहरे से कौन पूछेगा यह सवाल
फिर क्यों चुप रहते हो हर बवाल पर?
क्या पहचानते नहीं तुम
उन मवालियों को
जो फैलाते हैं हिंसा है सवाल पर?

न्यायालय फैसले करते हैं
सजा देते हैं या बरी कर देते हैं
यह सवाल
कभी सत्ता तंत्र से मुक्त न रहा
पर, मिटता नहीं वह दाग
जो लग जाता है माथे पर
एक बार तिलक बनकर
स्वयं को निहारो कभी खड़े होकर
दर्पण के सामने
तुम्हें दिख जायेंगे
हजारों मासूम चेहरे तुम्हारे पीछे  
करते ढेरो सवाल
तुम्हारी मन की बात पर,

अरुण कान्त शुक्ला
28/08/2017



   

        



Monday, August 14, 2017

फहराएंगे कल तिरंगा आराम से

फहराएंगे कल तिरंगा आराम से

हाकिम का नया क़ायदा है रहिये आराम से
गुनहगार अब पकडे जायेंगे नाम से,

हाकिम को पता है उसकी बेगुनाही,
वो तो सजावार है उसके नाम से,

उसका सर झुका रहा कायदों की किताब के सामने,
हाकिम को चिढ़ है उस किताब के नाम से,

जो जंग-ऐ- आजादी से बनाए रहे दूरियां,
फहराएंगे कल तिरंगा आराम से,

अरुण कान्त शुक्ला, 14 अगस्त 2017