ये कैसी सुबह थी
ये कैसी दुपहरी
है
न किरणों में
उजियारा है
न धूप में तपिश है
लगता है मेरे साथ
सूरज भी उदास है।
दिन जब गुजर रहा
है ऐसे
इस दिन की शाम
कैसी होगी?
क्या रात भी
जागेगी मेरे साथ?
चांद का मुख भी
क्या मुरझाया मुरझाया होगा?
क्या भोर कल की
भी उदास होगी?
इन सारे प्रश्नों
का हल है मेरे पास
होंठों पर एक
मुस्कान
बच्चे खेलने गये हैं आस-पास
उनके लौटते ही
मेरे चेहरे पर
होगी वही मुस्कान।
23/12/2022