रोटी
अब चाँद हो गयी है
न
मेरा कोई पक्षकार है
न
मेरा कोई पक्ष है
रिरियाती जनता है
मिमयाता विपक्ष है ।
रिरियाती जनता है
मिमयाता विपक्ष है ।
औंधे
मुहं पड़ा सुखों का संसार है
उसके ऊपर ठहाके लगाता दुखों का पहाड़ है
मरी हुई संवेदनाओं के बीच
मनुष्य भी बना भक्ष्य है ।।
उसके ऊपर ठहाके लगाता दुखों का पहाड़ है
मरी हुई संवेदनाओं के बीच
मनुष्य भी बना भक्ष्य है ।।
राजा
के चारणों के बीच
बुद्धि बेआवाज है
झूठों के नक्कारों की गूंज के बीच
सत्य बना तूती की आवाज है।।।
बुद्धि बेआवाज है
झूठों के नक्कारों की गूंज के बीच
सत्य बना तूती की आवाज है।।।
चाँद
अब रोटी सा नहीं दिखता
रोटी अब चाँद हो गयी है
रोज नहीं जलते दिवाली के दिए
पर, रात रोज अब अमावस हो गई है।।।।
रोटी अब चाँद हो गयी है
रोज नहीं जलते दिवाली के दिए
पर, रात रोज अब अमावस हो गई है।।।।
राजा
अंधा, दरबारी अंधे, संतरी बहरे
सब करते सिर्फ 'मन की बात'
उनके बीच, न मेरा कोई पक्ष है
न मेरा कोई पक्षकार है।।।।।
सब करते सिर्फ 'मन की बात'
उनके बीच, न मेरा कोई पक्ष है
न मेरा कोई पक्षकार है।।।।।
अरुण
कान्त शुक्ला
20 नवम्बर,2016
20 नवम्बर,2016
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