भंवर से कश्ती लगेगी किनारे
कैसे?
‘गज़ल’ को रख सका है पहरे में ‘अरुण’ कौन,
पलक झपकते बदलते हैं रुख
‘रदीफ़-ओ-काफिये’
बया ने मुश्किलों में बनाया
‘घरौंदा’ अपना
तूफां ने इक पल में उड़ा दिए
तिनके-तिनके
छोड़कर चप्पू, ‘बूढ़े हाथों’
में, तुम निकल लिये
भंवर से कश्ती लगेगी किनारे
कैसे?
अरुण कान्त शुक्ला
17/1/2018
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