श्रद्धांजली केदार को
वे कभी मरते नहीं
जिस क्षण उनकी देह
बंद कर देती है सांस लेना
उसी क्षण से साँसे लेने लगती हैं उनकी कविता
उसी क्षण से बातें करने लगते हैं
उनके उपन्यास, उनकी कहानी, नाटक के पात्र
उनकी तूलिकाएं गीत गाने लगती हैं और
उनकी बनाई तस्वीरें ड्राईंग रूम की दीवारों से उतरकर
घर में चहल-पहल करने लगती हैं
जोर शोर से, बुलंद आवाज में बतियाते हैं उनके आलेख
और इस तरह, जिस क्षण आती है उनकी मृत्यु की खबर
वे जिन्दा हो जाते हैं अपनी कविता, कहानी, उपन्यास और लेखों, तस्वीरों में
और फिर ज़िंदा रहते हैं अनवरत, अनंत काल तक
प्रेमचन्द, परसाईं, नागार्जुन और केदार बनकर
जिस क्षण उनकी देह
बंद कर देती है सांस लेना
उसी क्षण से साँसे लेने लगती हैं उनकी कविता
उसी क्षण से बातें करने लगते हैं
उनके उपन्यास, उनकी कहानी, नाटक के पात्र
उनकी तूलिकाएं गीत गाने लगती हैं और
उनकी बनाई तस्वीरें ड्राईंग रूम की दीवारों से उतरकर
घर में चहल-पहल करने लगती हैं
जोर शोर से, बुलंद आवाज में बतियाते हैं उनके आलेख
और इस तरह, जिस क्षण आती है उनकी मृत्यु की खबर
वे जिन्दा हो जाते हैं अपनी कविता, कहानी, उपन्यास और लेखों, तस्वीरों में
और फिर ज़िंदा रहते हैं अनवरत, अनंत काल तक
प्रेमचन्द, परसाईं, नागार्जुन और केदार बनकर
अरुण कान्त शुक्ला
20/3/2018
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