Thursday, December 21, 2017

तन्हां इस शहर में नहीं कोई शख्स

तन्हां इस शहर में नहीं कोई शख्स  

तन्हाई आये भी तो कैसे आये उनके पास
सुबह होती है जिनकी, शाम की रोटी की फ़िक्र के साथ ,

तन्हां इस शहर में नहीं कोई शख्स ‘अरुण’
फ़िक्र-ओ-गम की बारात है सबके साथ,

पीठ पर लादे प्लास्टिक का थैला, नहीं वो अकेला
भोंकते कुत्तों की फ़ौज पीछे पीछे है उसके साथ,

'सुबह' जब भी होगी, बहुत खूबसूरत होगी
सोते हैं हर रात इस ख्वाहिश के साथ,     

प्यार-ओ-रोमांस के गीत भी गायेंगे एक दिन
अभी तो खड़े हैं मजलूमों के साथ,

अरुण कान्त शुक्ला

21/12/2017    

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