घर में रहें राधा डरी डरी
छोड़ गए बृज कृष्ण, गोपी
किस्से खेलें फ़ाग
कहला भेजा मोहन ने, नहीं वन
वहाँ, क्या होंगे पलाश?
नदियों में जल
नहीं, न तट पर तरुवर की छाया
गोपियाँ भरें
गगरी सार्वजनिक नल से, आये तो क्यों आये
बंसीवाला?
घर में रहें राधा डरी डरी,
सड़कों पर न कोई उनका रखवाला
अब तो आ जाओ तुम, का न हुई
बड़ी देर नंदलाला?
मथुरा में था एक
ही कंस, बृज में हो गया कंसों का बोलबाला
कब सुधि लोगे
श्याम तुम, सुन लो राधा का नाला?
अरुण कान्त
शुक्ला
16/12/2017
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