अमावस की रात को चाँद का गायब होना
कोई नई बात नहीं
जहरीली हवाओं की धुंध इतनी छाई
पूनम की रात को भी चाँद गायब हो गया|
दिल में सभी के मोहब्बत रहती है
कोई नई बात नहीं
हमने मोहब्बत इंसानियत से की
ये गजब हो गया|
कहते हैं दर्द बयां करने से कम होता है
हमने बयां किया
दर्द तो कम न हुआ
लोग कहने लगे, मैं शायर हो गया|
इश्क-रश्क-माशूक की मोहताज नहीं
शायरी वो ज़ज्बा है ‘अरुण’
मशाल भी है, इंक़लाब भी है,
जिसे लगी 'चाहत' वतन की, सरफरोश हो गया |
अरुण कान्त
शुक्ला, 8/1/2017
नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 09-11-2017 को प्रातः 4:00 बजे प्रकाशनार्थ 846 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
ReplyDeleteचर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
धन्यवाद यादव जी | अवश्य कोशिश करूंगा | सुबह 4 बजे मेरे लिए शीघ्र हो जाता है|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद जोशी जी |
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई और शुभकामनायें।
ReplyDeleteधन्यवाद अन्नु जी|
Deleteवाह! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद नीतू जी|
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब....
धन्यवाद सुधा जी |
Deleteवाह!बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteधन्यवाद अपर्णा जी|
Deleteसुन्दर रचना.
ReplyDeleteधन्यवाद शर्माजी|
Deleteदर्द बयान करना शायर हो जाना ही है ... पर ये कह सब आगे निकल जाते हैं दर्द कोई नहीं देखता ... लाजवाब लिखा हिया ...
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