जिन्दगी का
शायर हूँ
जिन्दगी का शायर हूँ, मौत से क्या मतलब
मौत की मर्जी है, आज आये, कल आये|
टूट रहे हैं, सारे फैलाए भरम ‘हाकिम’
के,
‘हाकिम’ को चाहे यह बात, समझ आये न आये|
वो ‘इंसा’ गजब वाचाल निकला
बात उसकी, किसी को समझ आये न आये|
‘आधार’ जरुरी है ‘जीवन’ के लिये
‘आधार’ बिना रोटी नहीं, इंसा जी पाये न जी पाये
गाफिल रहे, जिन्दगी खुशनुमा बनाने रदीफ़-काफिये मिलाते रहे
जिन्दगी की ‘गजल’ लय-ताल से नहीं चलती, समझ न पाये
अरुण कान्त शुक्ला, 6/11/2017
No comments:
Post a Comment