शरद की वो रात
शरद की वो
रात
आज वापस ला
दो
आसमान से
बरसती काली राख
बस आज रुकवा
दो
बन चुकी है
खीर घर में
उसे कैसे
रखूं मैं
खुले आसमां
के नीचे
ऐ चाँद एक काम
करो
आज मेरे चौके
में ही आ जाओ
और बूँद दो
बूँद अमृत
उसमें टपका
दो
अरुण कान्त
शुक्ला, 5 अक्टोबर, 2017
No comments:
Post a Comment