तिनकों से बने सपने
तिनकों से बने सपने तो ,
हवा के हलके झोके से बिखर जाते हैं,
आंधी तो आती है आशियाने उजाड़ने ,
सर उठाकर खड़े पेड़ों को उखाड़ने ,
जो जीवन भर की मेहनत से बनते हैं,
जो वर्षों में सर उठाकर खड़े होते हैं ,
इसीलिये हम रेत के महल नहीं बनाते ,
तिनकों से सपने नहीं बुनते,
खुली आँखों से,
जीवन की मुश्किलों को,
संघर्षों से गूंथते हैं,
हवा के हलके झोके से बिखर जाते हैं,
आंधी तो आती है आशियाने उजाड़ने ,
सर उठाकर खड़े पेड़ों को उखाड़ने ,
जो जीवन भर की मेहनत से बनते हैं,
जो वर्षों में सर उठाकर खड़े होते हैं ,
इसीलिये हम रेत के महल नहीं बनाते ,
तिनकों से सपने नहीं बुनते,
खुली आँखों से,
जीवन की मुश्किलों को,
संघर्षों से गूंथते हैं,
अरुण कान्त शुक्ला
6/6/2017
6/6/2017
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