दौर कहाँ बदला है मित्र?
न
रूस, न
चायना में हो रही अब बारिश है,
न भारत में खोलता कोई छाता है,
न किसी को मास्को की ठंड से छींक आती है,
फर्क यही है हमारी आलोचना की सच्चाई,
अब उन्हें बहुत डराती है,
अपने ‘गलत’ को ‘सही’ बताने,
हमें साम्यवादी बताने की,
ये उनकी पुरानी साजिश है,
न भारत में खोलता कोई छाता है,
न किसी को मास्को की ठंड से छींक आती है,
फर्क यही है हमारी आलोचना की सच्चाई,
अब उन्हें बहुत डराती है,
अपने ‘गलत’ को ‘सही’ बताने,
हमें साम्यवादी बताने की,
ये उनकी पुरानी साजिश है,
अमरीका,ब्रिटेन के तलुए चाटने वाले,
जब से आए हैं सत्ता में,
देश नहीं तब से,
मनमोहन, मोदी के निर्देशों पर,
विश्व व्यापार संगठन , विश्व बैंक और आईएमएफ
के निर्देशों पर चलता है,
राष्ट्रप्रेम, देशप्रेम के जुमले उनके,
सिर्फ हमें बहलाने की साजिश है,
जब से आए हैं सत्ता में,
देश नहीं तब से,
मनमोहन, मोदी के निर्देशों पर,
विश्व व्यापार संगठन , विश्व बैंक और आईएमएफ
के निर्देशों पर चलता है,
राष्ट्रप्रेम, देशप्रेम के जुमले उनके,
सिर्फ हमें बहलाने की साजिश है,
दौर
कहाँ बदला है मित्र?
ये राजा भी,
देश की धरती, खनिज, जंगल बेचने,
विदेश में फेरी लगाने जाता है,
गिडगिडाते रोज विदेशी कंपनियों के सामने,
'मेक इन इंडिया' का कहाँ 'इंडिया' से कोई नाता है?
नोटबंदी नहीं कालेधन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद के खिलाफ,
गरीबों के जायज धन को लूटने रची साजिश है,
ये राजा भी,
देश की धरती, खनिज, जंगल बेचने,
विदेश में फेरी लगाने जाता है,
गिडगिडाते रोज विदेशी कंपनियों के सामने,
'मेक इन इंडिया' का कहाँ 'इंडिया' से कोई नाता है?
नोटबंदी नहीं कालेधन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद के खिलाफ,
गरीबों के जायज धन को लूटने रची साजिश है,
हमें
सिखाये भारत का रास्ता,
युद्ध
से बुद्ध को जाता है,
सिद्धार्थ
नहीं बना बुद्ध,
युद्ध से,
बुद्ध ने न की कभी की बात युद्ध की,
अशोक आज भी इतिहास में नृशंस हत्यारा कहलाता है,
अपना की इतिहास भुलाने के लिए राजा ने,
बुद्ध से जुड़ने की रची ये साजिश है,
युद्ध से,
बुद्ध ने न की कभी की बात युद्ध की,
अशोक आज भी इतिहास में नृशंस हत्यारा कहलाता है,
अपना की इतिहास भुलाने के लिए राजा ने,
बुद्ध से जुड़ने की रची ये साजिश है,
साम्यवाद
तो कभी आया न विश्व में,
समाजवाद से भारत का रहा नहीं दूर का नाता,
पर, इनकी बुराई पर ही कुछ लोगों का जीवन है पलता,
तेरहीं खाकर जीने वाले गमछा धारी को,
भला घर का भोजन है कब रुचता?
हमें भला कहाँ उज़्र साम्यवादी कहलाने में,
पर, समझना जरूरी है कि क्या उनकी साजिश है?
समाजवाद से भारत का रहा नहीं दूर का नाता,
पर, इनकी बुराई पर ही कुछ लोगों का जीवन है पलता,
तेरहीं खाकर जीने वाले गमछा धारी को,
भला घर का भोजन है कब रुचता?
हमें भला कहाँ उज़्र साम्यवादी कहलाने में,
पर, समझना जरूरी है कि क्या उनकी साजिश है?
अरुण कान्त शुक्ला,
14/12/2016
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