Friday, July 15, 2016

आदमी, कारवाँ और आदमियत


अकेले चलकर नहीं पहुंचा है,
आदमी आदमियत तक,
आदमी आज जहां है,
कारवाँ में ही चलकर पहुँचा है,
भीड़ से मंजिल का कोई वास्ता नहीं दोस्त,
भीड़ तो हत्याएं करती है,
कारवाँ मंजिल तय करता है,
भीड़ का हिस्सा जब आदमी था,
आदमी कहां वो तो आदम था,
भीड़ में आज भी आदम हैं,
आदमियों का कारवां तो धीरे धीरे सही,
बढ़ रहा है मंजिल की ओर,

6/02/2016

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