Wednesday, June 7, 2017

तिनकों से बने सपने

तिनकों से बने सपने

तिनकों से बने सपने तो , 
हवा के हलके झोके से बिखर जाते हैं, 
आंधी तो आती है आशियाने उजाड़ने , 
सर उठाकर खड़े पेड़ों को उखाड़ने , 
जो जीवन भर की मेहनत से बनते हैं, 
जो वर्षों में सर उठाकर खड़े होते हैं , 
इसीलिये हम रेत के महल नहीं बनाते , 
तिनकों से सपने नहीं बुनते, 
खुली आँखों से, 
जीवन की मुश्किलों को, 
संघर्षों से गूंथते हैं,


अरुण कान्त शुक्ला 
6/6/2017

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