तपिश
ये तपिश
सिर्फ सूर्य की
तो नहीं
इसमें कोई मिलावट
है,
यूँ लगता है
जैसे कोई घाम में
आग घोल रहा है,
ये थकान
सिर्फ चलने की तो
नहीं
इसमें कोई मिलावट
है,
यूँ लगता है
जैसे कोई पाँव
में पत्थर बाँध कर चला रहा है,
ये दुश्मनी
सिर्फ मेरी तेरी
तो नहीं
इसमें कोई मिलावट
है,
यूँ लगता है
जैसे कोई
मेरे-तेरे बीच दुश्मनी करा रहा है,
मेरे आँगन के
पत्थर
पहले भी गर्म
होते थे
उन पर चलने से
तलुए चिलकते थे,
पर अब गर्म कहाँ
होते हैं जलाते हैं
यूँ लगता है
जैसे कोई उनमें
आग लगा रहा है,
मेरे घर के झरोखे
से
पहले भी गर्म
हवाएं अन्दर आती थीं
पर, वो सुकून
देती थीं,
अब तो लपटें आती
हैं
हम डरते हैं
झरोखे खोलने से
यूँ लगता है कोई
झरोखे से अग्निबाण चला रहा है,
कौन है वो?
अरुण कान्त
शुक्ला
4अप्रैल, 2017
शायद बदलाव है समय का ये ... खुद को खुद ही नहीं पहचान पा रहे हैं हम जैसे ...
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