Sunday, October 8, 2017

लोकतंत्र में

लोकतंत्र में

संघर्ष
और संघर्ष
प्रत्येक संघर्ष का लक्ष्य विजय
विजय का अर्थ
दो वक्त की रोटी/ दो कपड़े /सर पर छत
अभावहीन जीवन जीने की चाहत
बनी रहेगी जब तक
विजय का अर्थ
जारी रहेगा संघर्ष तब तक
संघर्ष निरंतर है
संघर्ष नियति है
लोकतंत्र में| 

क्लेश
और क्लेश
उत्सवधर्मी देश में
क्लेश/संताप/विहलता से ही संघर्षरत रहना
बना रहेगा जब तक जीवन का अर्थ
आते रहेंगे दिवाली/ईद/क्रिसमस/होली
माथे पर शिकनें लिए
जो खोती रहेंगी बाजार में
जो है आज का परम सत्य
क्लेश/संताप/विहलता से दूर
अपने में मस्त
लोकतंत्र में|

स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा
लोकतंत्र का नारा
खो चुका अपना अर्थ
लोकतंत्र बन गया है दास
स्वामी बन गए हैं उसके समर्थ
वंचितों और उत्पीड़ितों के सीने पर
नृत्य कर रहे समर्थ
जब तक प्राप्त नहीं कर लेता  
लोकतंत्र अपना खोया नारा और  
बनी रहेगी आमजनों में जब तक
स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की अभिलाषा
जारी रहेगा वंचितों का संघर्ष
अनवरत
लोकतंत्र में|

15 अगस्त
26 जनवरी
बने हैं सरकारी समारोह
भुला दिए गए सन्दर्भों के उत्सव
मनाये जाते हैं ‘लोक’ से दूर
‘लोक’ जंजीरों में जकड़ा
पड़ा है समारोहों से दूर
काट नहीं लेगा जब तक अपनी जंजीरें
‘लोक’ रहेगा संघर्षरत
इन जंजीरों के खिलाफ
लोकतंत्र में|

अरुण कान्त शुक्ला, 8/10/2017     

     

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