फिजाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में
सिसकियाँ
फिर भी सुनाई आती हैं दिवाली में,
बहुत
कोशिश की हमने अँधेरे को भगाने की घर से
हँसी अँधेरे
की फिर भी सुनाई आती है दिवाली में,
रोशनी
से अमावस की रात यदि चांदनी खिलती
झोपड़ी
में भी चांदनी खिलखिलाती दिवाली में,
कब तक
देखते रास्ता लक्ष्मी का सो गए
सुना है
वो सिर्फ महलों में जाती हैं दिवाली में,
नेताओं
और अधिकारियों के घर भेज रहे हैं ठेकेदार मिठाई के डिब्बे
सुना
है इन्हीं डिब्बों में बैठकर लक्ष्मी जाती आती हैं दिवाली में,
अरुण
कान्त शुक्ला,
26 अक्टोबर’ 2014
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