पांच दोहे..
जग बदले, बदले जग की रीत,
मैं 'अरुण' क्यों
बदलूं, मुझे सबसे है प्रीत,
रार रखना है तो सुनो मित्र, रखो
खुद से रार,
छवि न बदले कभी किसी की, चाहे
दर्पण तोड़ो सौ बार,
समझ बूझकर लो फैसले, समझ
बूझकर करो बात,
गोली जैसी घाव करे, मुंह
से निकली बात,
काग के सिर मुकुट रखे से, काग न
होत होशियार,
उड़ उड़ बैठे मुंडेर पर, कांव
कांव करे हर बार,
कहे
‘अरुण’ सीख उसे दीजिये, जो पाकर न बोराय,
करे चाकरी
राजा की, सीख उसे कभी न भाय,
8
सितम्बर, 2015