Saturday, October 13, 2018

उसी उदास शाम की राह तकते हुए

उसी उदास शाम की राह तकते हुए

थकी हुई उदास शाम,
रोज की तरह,
फिर आई है मेरे साथ वक्त बिताने,
मैं सोचता हूँ, 
उसे कोई नया तोहफा दे दूं,
मुस्कराने की कोई वजह दे दूं,
आखिर कायनात जुडी है उसके साथ,
वो क्यों उदास हो,
उदास शाम के साथ,
पर मेरी झोली में,
रोज की तरह,
और कुछ भी नया नहीं है,
उसे देने के लिए,
एक सूनी थका देने वाली रात के सिवाय,
जिसकी सहर कभी पास नहीं होती,
जिसमें आवाजें,
सिर्फ, घर के बाहर भोंकते और रोते कुत्तों की आती है,
या फिर निकलता है कोई आवारा शोहदा,
जिसकी बाईक भी भोंकती है,
कुत्ते की आवाज में,
मैं जानता हूँ,
मेरे इस तोहफे को देखते ही,  
वह उदास शाम बदल जायेगी,
एक थकी हुई सुबह में,
मेरा दिन शुरू होगा जिसके साथ,
उसी उदास शाम की राह तकते हुए,

अरुण कान्त शुक्ला
13/10/2018