Wednesday, August 20, 2014

इन्कलाब का क्या आये न आये..



इन्कलाब का क्या आये न आये..

बात फिर छिड़ी फूलों की, फिर आज रईस याद आये
हर बारिश के पहले छाते हैं छप्पर, बारिश का क्या आये न आये

उनने कहा, इन्कलाब जिसकी चाहत है, पीछे वो चला आये
चलते हैं पीछे बांधे मुठ्ठी, इन्कलाब का क्या आये न आये

मोहब्बत करके गलती कर दी, बैठे उठ्ठे, अब, चैन न आये
उन्हें चैन है, सोते है कोठी में, नींद हमें आये न आये

भिगोकर, चाशनी में, वादे किये थे,
यकीं किसी को आये न आये
कहते हैं अब , खाना पड़ेंगी, दवाएं कड़वी, खाते किसी को आये न आये

अरुण कान्त शुक्ला
21 अगस्त, 2014 

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