Sunday, December 23, 2018

कभी गिरेबां में भी झांककर देखिये जनाब

कभी गिरेबां में भी झांककर देखिये जनाब

असलियत सिर्फ सामने देखने से नहीं पता चलती,
कभी गिरेबां में भी झांककर देखिये जनाब,

सवाल पूछते रहना नहीं कोई खासियत,
सवालों के कभी जबाब भी दीजिए जनाब,

माना, आपने करोड़ों को पहनाई है टोपी,
कभी करोड़ों के खातिर आप भी टोपी पहनें जनाब,

बहुत हुईं आपकी 'मन की बातें',
बेमन से सही, अब हमारे 'मन की बात' भी सुनिए जनाब,

'पाक' में गले लगने, अम्मी के चरण छूने का दिखावा तो बहुत हुआ,
देश में भी तो किसी अम्मीं के लाल से, एक बार, गले मिलिए जनाब,

अरुण कान्त शुक्ला
23/12/2018


Tuesday, December 4, 2018

अपने इस दौर में


इस दौर में जो चुप हैं,
जाहिर है वो बच जायेंगे,
पर, ये कोई अकेला दौर नहीं है,
कि, वो हमेशा के लिये बचे रह पायेंगे,
इस दौर के बाद एक दौर और आयेगा
उन्हें मारने के लिये
जो पहले दौर में चुप थे
जाहिर है, हुकूमत को हर दौर में पता होता है
हुकुम के खातिर कौन है
हुकुम के खिलाफ कौन है,

तूफान के सामने सीना तानकर,
जो खड़ा रह पाएगा,
जाहिर है, तूफान उसके सर से गुजर जाएगा,
जो खड़े होंगे, तूफान की तरफ पीठ करकर,
जाहिर है, तूफान उन्हें साथ उड़ा ले जायेगा,

ये दौर उनका है,
जो भीड़ से कभी हाँ, कभी न,
कहलवाते कहलवाते, आए हैं हुकूमत में,
जाहिर है, हुकूमत भी उनने सौंप दी है,
भीड़ के हाथों में,
इसमें नई कोई बात नहीं,
यही किया था इस हुकुम ने,
अटल के दौर में,
जाहिर है, इससे अलग कुछ और वो नहीं कर सकता था,
अपने इस दौर में,

अरुण कान्त शुक्ला
4/12/2018