Sunday, November 5, 2017

जिन्दगी का शायर हूँ ..

जिन्दगी का शायर हूँ

जिन्दगी का शायर हूँ, मौत से क्या मतलब
मौत की मर्जी है, आज आये, कल आये|

टूट रहे हैं, सारे फैलाए भरम ‘हाकिम’ के,
हाकिम’ को चाहे यह बात, समझ आये न आये|

वो ‘इंसा’ गजब वाचाल निकला
बात उसकी, किसी को समझ आये न आये|

‘आधार’ जरुरी है ‘जीवन’ के लिये
‘आधार’ बिना रोटी नहीं, इंसा जी पाये न जी पाये

गाफिल रहे, जिन्दगी खुशनुमा बनाने रदीफ़-काफिये मिलाते रहे
जिन्दगी की ‘गजल’ लय-ताल से नहीं चलती, समझ न पाये

अरुण कान्त शुक्ला, 6/11/2017    


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