Sunday, November 19, 2017

पीढ़ियाँ पर बढ़ेंगी इसी राह पर आगे..

पीढ़ियाँ पर बढेंगी इसी राह पर आगे

कोट के काज में फूल लगाने से
कोट सजता है
फूल तो शाख पर ही सजता है,

क्यों बो रहे हो राह में कांटे
तुम्हें नहीं चलना
पीढ़ियाँ पर बढेंगी, इसी राह पर आगे,

तुम ख़ूबसूरत हो, मुझे भी दिखे है
ख़ूबसूरती के पीछे
है जो छिपा, वो भी दिखे है,

मैं न हटाता चाँद सितारों से नजरें
पर क्या करूँ
धरती से उठती नहीं, अश्क भरी नजरें,

मेरे गीत खुशियों से भरे पड़े हैं
मेरे साथ सिर्फ
बुलंद आवाज में उन्हें, तुम्हें गाना होगा,

जब भी सख्त हुए पहरे गीतों पर
गाये लोगों ने
इंक़लाब के गीत, और बुलंद आवाज में,

रास्ते मुसाफिर को कहीं नहीं ले जाते
चलना पड़ता है
कांटों पर, मुसाफिर, मंजिल पाने के लिए,

अरुण कान्त शुक्ला, 19/11/2017         

 

 


  

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