Friday, November 3, 2017

लोग सुनकर क्यूं मुस्कराने हैं लगे

लोग सुनकर क्यूं मुस्कराने हैं लगे

और भी खबसूरत अंदाज हैं मरने के लेकिन
इश्क में जीना 'अरुण' को सुहाना है लगे 

क्यूं करें इश्क में मरने की बात
इश्क तो जीने का खूबसूरत अंदाज है लगे 

दिल में आई है बहार जबसे 
पतझड़ को आने से डर है लगे 

हमें क्या मालूम महबूब का पता 
दिल ही उसका अब घर है लगे 

नजरें चुराईं, नजरें झुकाईं, लाख जतन किये   
मिलीं नजरें तो हटाने का मन न करे 

इश्क को लाख छुपाया, छुपा न सके
जो हम उड़े उड़े से वो खोये खोये रहने हैं लगे

एक गम होता तो बता देते सबको 
उनसे मिलना छोड़ अब सब ग़मगीन है लगे

फ़िजाओं में खुशबू सी फ़ैली है बात
फ़साने हमारे लोग हमें ही सुनाने हैं लगे

नया है, नहीं पुराना अपना फ़साना 
सुनकर आप क्यूं मुस्कराने हैं लगे  

जमाने ने दिए गम बहुत पर तुम्हें नहीं भूले हम 
जताने ये तराने इश्क के गाने हैं लगे


अरुण कान्त शुक्ला, 4/11/20 

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