Thursday, October 5, 2017

शरद की वो रात

शरद की वो रात

शरद की वो रात
आज वापस ला दो
आसमान से बरसती काली राख
बस आज रुकवा दो
बन चुकी है खीर घर में
उसे कैसे रखूं मैं
खुले आसमां के नीचे
ऐ चाँद एक काम करो
आज मेरे चौके में ही आ जाओ
और बूँद दो बूँद अमृत
उसमें टपका दो


अरुण कान्त शुक्ला, 5 अक्टोबर, 2017   

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