Thursday, October 12, 2017

ईश्वर भी अब मालिक हो गया है

ईश्वर भी अब मालिक हो गया है  

पत्थर के देवता अब जमाने को रास नहीं आते
संगमरमर के गढ़े भगवान हैं अब पूजे जाते,

ईश्वर किसी मालिक से कम नहीं   
मुश्किल है उसका मिलना रास्ते में आते जाते,

भक्त को नहीं जरूरत कभी मंदिर जाने की
भगवान उसके तो उसके साथ ही हैं उठते, बैठते, खाते,

मंदिर के भगवान से बेहतर तो राह के पत्थर हैं
राही को ठोकर मारकर हैं चेताते,

राह के पत्थरों को ध्यान से देखते चलना
राह भूलने पर ये ही हैं रास्ता बताते,

जाने कैसे लोग हैं वो जिनके दिल पत्थर के हैं
हम तो दिल पर पत्थर रखकर जीवन हैं बिताते,


अरुण कान्त शुक्ला, 12/10/2017     

Sunday, October 8, 2017

लोकतंत्र में

लोकतंत्र में

संघर्ष
और संघर्ष
प्रत्येक संघर्ष का लक्ष्य विजय
विजय का अर्थ
दो वक्त की रोटी/ दो कपड़े /सर पर छत
अभावहीन जीवन जीने की चाहत
बनी रहेगी जब तक
विजय का अर्थ
जारी रहेगा संघर्ष तब तक
संघर्ष निरंतर है
संघर्ष नियति है
लोकतंत्र में| 

क्लेश
और क्लेश
उत्सवधर्मी देश में
क्लेश/संताप/विहलता से ही संघर्षरत रहना
बना रहेगा जब तक जीवन का अर्थ
आते रहेंगे दिवाली/ईद/क्रिसमस/होली
माथे पर शिकनें लिए
जो खोती रहेंगी बाजार में
जो है आज का परम सत्य
क्लेश/संताप/विहलता से दूर
अपने में मस्त
लोकतंत्र में|

स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा
लोकतंत्र का नारा
खो चुका अपना अर्थ
लोकतंत्र बन गया है दास
स्वामी बन गए हैं उसके समर्थ
वंचितों और उत्पीड़ितों के सीने पर
नृत्य कर रहे समर्थ
जब तक प्राप्त नहीं कर लेता  
लोकतंत्र अपना खोया नारा और  
बनी रहेगी आमजनों में जब तक
स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की अभिलाषा
जारी रहेगा वंचितों का संघर्ष
अनवरत
लोकतंत्र में|

15 अगस्त
26 जनवरी
बने हैं सरकारी समारोह
भुला दिए गए सन्दर्भों के उत्सव
मनाये जाते हैं ‘लोक’ से दूर
‘लोक’ जंजीरों में जकड़ा
पड़ा है समारोहों से दूर
काट नहीं लेगा जब तक अपनी जंजीरें
‘लोक’ रहेगा संघर्षरत
इन जंजीरों के खिलाफ
लोकतंत्र में|

अरुण कान्त शुक्ला, 8/10/2017     

     

यह कैसा राजा है

यह कैसा राजा है


यह कैसा राजा है
राजा है या चारण है
खुद ही खुद के कसीदे गा रहा है|

फ्रांस की रानी ने कहा था
रोटी नहीं तो केक खाओ
भारत में राजा भूखे को
हवाई यात्रा करा रहा है|

इसका विकास अजब है
इसका चश्मा गजब है
दिवाली से 15 दिन पहले
दिवाली मना रहा है|

यह राजा है या ब्रम्ह राक्षस
इसके हाथ इसकी पीठ तक पहुँचते हैं
जब मची है देश में हाय-हाय
अपनी पीठ खुद थपथपा रहा है|

120 करोड़ लोगों में से
कुछ की हत्याओं से  
राजा नहीं होता व्यथित
बस खुद के कसीदे गा रहा है|

यह कैसा राजा है
राजा है या चारण है
खुद ही खुद के कसीदे गा रहा है|

अरुण कान्त शुक्ला, 8/10/2017 


  




Thursday, October 5, 2017

शरद की वो रात

शरद की वो रात

शरद की वो रात
आज वापस ला दो
आसमान से बरसती काली राख
बस आज रुकवा दो
बन चुकी है खीर घर में
उसे कैसे रखूं मैं
खुले आसमां के नीचे
ऐ चाँद एक काम करो
आज मेरे चौके में ही आ जाओ
और बूँद दो बूँद अमृत
उसमें टपका दो


अरुण कान्त शुक्ला, 5 अक्टोबर, 2017