Tuesday, April 4, 2017

तपिश

तपिश

ये तपिश
सिर्फ सूर्य की तो नहीं
इसमें कोई मिलावट है,
यूँ लगता है
जैसे कोई घाम में आग घोल रहा है,

ये थकान
सिर्फ चलने की तो नहीं
इसमें कोई मिलावट है,
यूँ लगता है
जैसे कोई पाँव में पत्थर बाँध कर चला रहा है,

ये दुश्मनी
सिर्फ मेरी तेरी तो नहीं
इसमें कोई मिलावट है,
यूँ लगता है
जैसे कोई मेरे-तेरे बीच दुश्मनी करा रहा है,

मेरे आँगन के पत्थर
पहले भी गर्म होते थे
उन पर चलने से तलुए चिलकते थे,
पर अब गर्म कहाँ होते हैं जलाते हैं
यूँ लगता है
जैसे कोई उनमें आग लगा रहा है,

मेरे घर के झरोखे से
पहले भी गर्म हवाएं अन्दर आती थीं
पर, वो सुकून देती थीं,
अब तो लपटें आती हैं
हम डरते हैं झरोखे खोलने से
यूँ लगता है कोई झरोखे से अग्निबाण चला रहा है,

कौन है वो?

अरुण कान्त शुक्ला

4अप्रैल, 2017      

1 comment:

  1. शायद बदलाव है समय का ये ... खुद को खुद ही नहीं पहचान पा रहे हैं हम जैसे ...

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