Tuesday, January 3, 2017

और कारवां...

और कारवां

न वाह वाह का शोर
न तालियों की गडगडाहट
न मित्रों की पीठ पीछे दी गईं गालियाँ
न भीड़ में पारित निंदा प्रस्ताव
कोई भी तो मुझे डिगा नहीं सका
मेरे चेहरे पर न एक दाग लगा सका
सबसे बेखबर बेपरवाह
आज भी मैं बढ़ रहा हूँ मंजिल-ऐ-ज़ानिब की ओर
कारवां के साथ
और कारवां
वह तो बनता गया
मंजिल की तरफ बढ़ते
मेरे हर कदम के साथ

9/2/2016  

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर
    नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं

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  2. धन्यवाद कविता जी ..

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