Saturday, December 17, 2016

भला 'मौन'

भला ‘मौन’

मौन भला होता है,
अनेक बार,
‘बकवास’ बोलते रहने से,
तुम्हारा मौन इसीलिये भला लगा मुझे,
इस बार,
बचा तो मैं एक और,
बकवास सुनने से,

कितना अच्छा होता,
तुम्हारे मुंह से निकले शब्दों के,
अर्थ भी कुछ होते,
कथनी और करनी में,
रिश्ते भी कुछ होते,
बच जाते दबे-कुचले,
तुम्हारी ‘सनक’ के नीचे पिसने से,

लोकतंत्र में ‘लोक’ से न रहा,
कभी तुम्हारा रिश्ता,
‘तंत्र’ रहा हमेशा,
तुम्हारे शासन में सिसकता,
इतिहास में दर्ज तो प्रत्येक शासक होता है,
पर, तुम्हारा ‘काल’ तो लिखा जाएगा,
स्याह स्याही के हर्फों से,        

अरुण कान्त शुक्ला

16/12/2016    

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