Thursday, December 8, 2016

मेरी फितरत इतनी कमजोर नहीं

मेरी फितरत इतनी कमजोर नहीं

मैं क्यों भरूं पिछले जन्म की करनी,
मुझे क्या पता "करनी" तेरी है या मेरी है,
इस जन्म का मेरा मजमून तो बेहतर है,
पर, तेरी करनी मैं 'भोग' रहा हूँ,
अपनी करनी का हिसाब मुझे चाहिए इसी जन्म में,
'पिछले' 'अगले' जन्म में मेरा भरोसा नहीं,
मेरा विश्वास नहीं डोलता 'अगर' 'मगर' में,
मेरी फितरत इतनी कमजोर नहीं,
अगले जन्म,पिछले जन्म का नुस्खा बहुत पुराना है,
सदियों से इसी ही नुस्खे से तुमने,
मजलूमों को बहुत भरमाया है,
तुम्हें नहीं देखा भरते कभी,
पिछले जन्म की ‘करनी’ का फल,
इस जन्म में भी तुम कहर ढा रहे,
ऐश्वर्य और वैभव का सुख भी तुम्हीं उठा रहे,
हमारे रुदन को पिछले जन्म का कर्म बता रहे,
अपने ‘भोग’ ‘विलास’ को पिछले जन्म का पुण्य बता रहे,
क्यों क्या तुम्हें नहीं बनाना बेहतर अपना अगला जन्म,
क्यों इतना पाप अपने खाते में लिखा रहे?
क्योंकि तुम्हें मालूम है,
नहीं होता कुछ ‘अगला’ ‘पिछला जन्म’,
तुम केवल मजलूमों को भरमा रहे,
'पिछले' 'अगले' जन्म में मेरा भरोसा नहीं,
मेरा विश्वास नहीं डोलता 'अगर' 'मगर' में,
मेरी फितरत इतनी कमजोर नहीं,
 

अरुण कान्त शुक्ला  ४/१२/२०१६

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