Wednesday, November 23, 2016

वो मगरमच्छ भी अब शर्माते हैं

वो मगरमच्छ भी अब शर्माते हैं

भूख को धैर्य रखना समझाते हैं, बात उनकी निराली है, 
आँखों को समझो समुन्दर, और आंसुओं का खारा पानी बताते हैं,

बात करो आज की, तो हजार साल पीछे जाते हैं,
धन्य है वो पाठशाला और गुरु, जहां आँखों वालों को अंधा बनाते हैं,

पंडित-पुरोहित, शादीशुदा-गैरशादीशुदा, बीच में रिक्त स्थान,
उन्हें खुद नहीं मालूम, वो जताना क्या चहाते हैं,

चापलूसी प्रिय है राजा को, भीड़ खड़ी की है चापलूसों की,
तर्क संगत बात करने वालों को, चापलूस देश-द्रोही ठहराते हैं,

बात-बात में नीचे मुंह कर सुबकियां लेना, राजा का शगल अनोखा है,
ऐसे टसुए देख, बचपन में खेला जिनसे, वो मगरमच्छ भी अब शर्माते हैं,

अरुण कान्त शुक्ला
24/11/2016

          

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