Thursday, July 23, 2015

बेवफा लहरें..



बेवफा लहरें

समुद्र की लहरें कभी खामोश नहीं रहतीं,
समुद्र की लहरें कभी वफ़ा नहीं करतीं,
उनकी फितरत है लौट जाना,
साहिल को भिगोकर,
लहरों पे कभी यकीन न करना
रेत पर पाँव जमा कर रखना,
वरना, बेवफा लहरें बहा ले जायेंगी,
तुम्हें भी, तलुए के नीचे की रेत के साथ,
समुद्र के किनारे खड़े होना भी जद्दोजहद है,
ठीक वैसी ही, जैसी रोज होती है मेरे साथ,
दो वक्त की रोटी कमाने के लिए,
चुकाने पड़ते हैं, कई वक्त की रोटियों के दाम, 

23/7/2015

Saturday, July 18, 2015

ये खुशबू कहाँ से आ रही है रोटी की हवाओं में



ये खुशबू कहाँ से आ रही है रोटी की हवाओं में


आता रहा जाता रहा तेरा चेहरा रात भर ख्यालों में

ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में ,



भूख से लरजते बच्चे ने पूछा माँ से, माँ,

ये खुशबू कहाँ से आ रही है रोटी की हवाओं में,



तेरे जुमले अब जुल्मों में बदल रहे हैं,

क्या हुआ उन वादों का किये थे जो चुनावों में,



लोग मर रहे हैं, तुम लाश गिन रहे हो,

मुश्किल हो गया है सांस लेना, सड़ांध इतनी है हवाओं में,



तुम्हारी सभाओं में बजती तालियों का राज खुल गया है,

खुद ले जाते हो ताली बजाने लोगों को सभाओं में,


18/7/2015

Thursday, July 16, 2015

वो बीच में बचा रहे




वो बीच में बचा रहे





ये कैसा कोहराम मचा है
न उन्हें पता है,
न हमें पता है,
कोई है बीच में,
जो चाहता है कोहराम मचा रहे,
वो हमें काटते रहें,
हम उन्हें काटते रहें,
वो बीच में बचा रहे,


अरुण कान्त शुक्ला 
16 जुलाई, 2015