Sunday, September 6, 2015

मन की बात का बोझ..

मन की बात का बोझ

एक आदमी में छुपे हैं कई शैतान,
आखिर कोई शैतान का सम्मान करे तो क्यों करे?

एक आदमी के ज्ञान की परतों में छिपी हैं कई मूढ़ताएं
आखिर कोई किसी मूढ़ पर भरोसा करे तो क्यों करे?

एक आदमी के अतीत के पन्नों पर पुती है काली स्याही
आखिर कोई किसी के अतीत से आँखें मूंदे तो क्यों मूंदे?

एक आदमी की बातों में बस पकते हैं ख्याली पुलाव
आखिर कोई किसी के ख्याली पुलावों से पेट भरे तो कैसे भरे?

एक आदमी कर रहा है मन मन भर मन की बात  
आखिर कोई उसके मन की बात का बोझ ढोए तो क्यों ढोए?

अरुण कान्त शुक्ला

6/9/2015    

No comments:

Post a Comment