Friday, August 28, 2015

मित्र कवि युद्ध शिल्पी न बनो..



मित्र कवि युद्ध शिल्पी न बनो

कविता में तोप चलाओ,
पर बेरोजगारी के खिलाफ,
तलवारें भांजो पर भुखमरी के खिलाफ,
डंडे बरसाओ पर स्त्री की अस्मत के खातिर ,
भाई कवि मित्र,
पर अपनी कविता में,
युद्ध के लिए देशों को न उकसाओ ,
इसकी कीमत बहुत भारी होती है,
विधवाओं की सूनी मांग ,
समाज के लिए रात कारी होती है,
शब्द शिल्पी हो तुम,
युद्ध शिल्पी न बनो,
कविता को बनाओ,
नये सपनों,
नये समाज को गढ़ने का आधार,
जिसमें हो समानता, बराबरी और भाईचारा,
रहे यही प्रयास तुम्हारा,
बन न पाये कविता कभी,
किसी युद्ध का हथियार,
किसी सिरफिरे की वहशी सोच का औजार,
28/8/2015

No comments:

Post a Comment