Friday, August 29, 2014

युद्ध..



युद्ध..

आओ युद्ध युद्ध खेलें
बहुत बरस बीत गए हैं
हम आपस में लड़ लें
दो चार नहीं तो एक युद्ध तो लड़ लें,

युद्ध के लिए बहुत कारण हैं
मेरे देश में भी बेरोजगारी है
भुकमरी और लाचारी है
तुम्हारे देश में भी बेरोजगारी है
भुकमरी और लाचारी है
इससे पहले कि वो भूखे नंगे हमसे लड़ें
हम आपस में लड़ लें
दो चार नहीं तो एक युद्ध तो लड़ लें,

ये बड़े बड़े उद्योगपति
मंद पड़ी गई है जिनके मुनाफे की गति
ब्रिटेन अमेरिका आस्ट्रेलिया फ्रांस इजराईल और रूस
हाथों में लेकर खड़े हैं घूस
हथियारों की इनसे खरीदी कर लें
इससे पहले कि ये हमसे लड़ लें
आओ हम आपस में लड़ लें
दो चार नहीं तो एक युद्ध तो लड़ लें,

देश में हैं जितने भी
नदी पहाड़ जंगल जमीन और खान
कारपोरेट और धन्नासेठ कह रहे
कर दो हमारे नाम
ये नहीं है कोई छोटा काम
इससे पहले कि कारपोरेट और धन्नासेठ हम पर उखड़ें
आओ हम आपस में लड़ लें
दो चार नहीं तो एक युद्ध तो लड़ लें

ब्रिटेन अमेरिका आस्ट्रेलिया फ्रांस इजराईल और रूस
बना रहे हैं भारी दबाव
हथियार बनाने के कारखाने लगाओ
उन्हें हमारे देश में पूंजी लगाना है
इसीलिये अब हमें युद्ध को राष्ट्रीय गान बनाना है
इसके पहले कि वो सब मिलकर हमारे ऊपर चढ़ें
आओ हम आपस में लड़ लें
दो चार नहीं तो एक युद्ध तो लड़ लें,

किसान माँग रहे फसल के पूरे दाम
मजदूर कह रहे हटाओ वेतन जाम
बेरोजगार मांग रहे काम
गुंडों का सड़कों पर हो गया है राज
स्त्रियों की अस्मत का सड़कों पर लुटना जारी है
हवा बनी थी दबदबा नहीं बना सका मेरा नाम
अब तो कोई चारा नहीं
आओ हम आपस में लड़ लें
दो चार नहीं तो एक युद्ध तो लड़ लें,

मैंने तुम्हें शपथ गृहण में बुलाया
तुम आये, मैंने शॉल दिया
तुमने साड़ी भिजवाई
हमेशा की तरह युद्ध पूर्व नाटक का
पहला मैत्रिय दृश्य समाप्त हो गया
तुम नहीं सुधरोगे जनता को विश्वास हो गया
हम तुमसे ज्यादा ताकतवर हैं
जनता को ये आभास हो गया
आओ अब आपस में लड़ लें
दो चार नहीं तो एक युद्ध तो लड़ लें,

दो चार लोग तो हर देश में होते हैं,
यहाँ भी, वहां भी
युद्ध नहीं युद्ध नहीं जो चिल्लाते रहते हैं
इन शांतिकामियों की खबर लेने
राष्ट्र प्रेमियों की एक फ़ौज तैयार खडी है
यहाँ भी वहां भी
जो इन शान्ति प्रेमियों को खदेड़ देगी
आओ अब हम आपस में लड़ लें
दो चार नहीं तो एक युद्ध तो लड़ लें,

सुनो, जनता कहाँ इसे समझेगी
रिसाला पुराना होने से पहले खत्म करना होता है
नया रिसाला खरीदोगे तभी कमीशन मिलता है
हर नया उसकी लालसा में युद्ध की ओर तकता है,
सिर्फ मेरे और तेरे देश में नहीं
हर देश में यही होता है
युद्ध कमीशन का बड़ा जरिया हैं
जनता को ये कहाँ समझता है
आओ अब हम आपस में लड़ लें
दो चार नहीं तो एक युद्ध तो लड़ लें,


अरुण कान्त शुक्ला, 28/8/2014

Wednesday, August 20, 2014

इन्कलाब का क्या आये न आये..



इन्कलाब का क्या आये न आये..

बात फिर छिड़ी फूलों की, फिर आज रईस याद आये
हर बारिश के पहले छाते हैं छप्पर, बारिश का क्या आये न आये

उनने कहा, इन्कलाब जिसकी चाहत है, पीछे वो चला आये
चलते हैं पीछे बांधे मुठ्ठी, इन्कलाब का क्या आये न आये

मोहब्बत करके गलती कर दी, बैठे उठ्ठे, अब, चैन न आये
उन्हें चैन है, सोते है कोठी में, नींद हमें आये न आये

भिगोकर, चाशनी में, वादे किये थे,
यकीं किसी को आये न आये
कहते हैं अब , खाना पड़ेंगी, दवाएं कड़वी, खाते किसी को आये न आये

अरुण कान्त शुक्ला
21 अगस्त, 2014