Friday, September 27, 2013

गुजरात में बाढ़ आई है





गुजरात में बाढ़ आई है

जब वो कह रहे थे,
कि देश में भाजपा की आंधी आई है,
उन्हें नहीं मालूम था,
कि गुजरात में बाढ़ आई है,

जब वो कह रहे थे,
कि चीन जीडीपी का 20% शिक्षा पर खर्च करता है,
उन्हें नहीं मालूम था, कि गुजरात शिक्षा पर कितना खर्च करता है,

जब वो सद्भावना रेली में टोपी लौटा रहे थे,
कि संघ कट्टरता पर रीझकर,
उन्हें पीएम अवेटिंग बना दे,
उन्हें नहीं मालूम था,
कि सभा में नकली मुसलमान दिखें इसलिए,
टोपी और बुर्के भी खरीदना पड़ता है,

जब वो कह रहे थे,
कि केंद्र सरकार ने सेना के हाथ बाँध रखे हैं,
उन्हें कहाँ से मालूम होगा की युद्ध की कीमत,
देश के मासूम लोग चुकाते हैं,

उनके पास हर मुद्दा मर्ज है,
उसका इलाज ज़ुबानी जमा खर्च है,
इसीलिये तो उन्हें नहीं मालूम ,
कि कुपोषण हो या शिक्षा कर्मियों का वेतन,
हर मामले में उनका शासन भी,
बीमारों की लिस्ट में दर्ज है,

अरुण कान्त शुक्ला,
26 सितम्बर,2013   

Wednesday, September 25, 2013

सरकार के फैसले ..



सरकार के फैसले...

सरकार का ध्येय है,
आवाम खुश रहे,
सरकार फैसले लेती है,
आवाम को खुश करने के लिए,

फैसलों पर क्रियान्वयन नहीं करती,
किसी को दुःख न पहुंचे इसलिये,

आप खुद सोचो,
आप खुश हुए किसलिए,
और आप दुखी हुए किसलिए,

आप खुश रहो,
सरकार के फैसले नहीं होते,
किसी को दुखी करने के लिए,

अरुण कान्त शुक्ला
25/9/2013

Tuesday, September 17, 2013

हवन करेंगे, हवन करेंगे



हवन करेंगे, हवन करेंगे

मोदी के जन्मदिन पर दिल्ली बीजेपी दफ्तर में हवन भी होगा. दिल्ली बीजेपी को मोदी मैजिक पर इतना भरोसा है कि 29 सितंबर को दिल्ली में होने वाली रैली को वीडियो स्क्रीन के जरिए जगह-जगह लाइव दिखाने का मेगा प्लान बना लिया है| नीचे कविता के रूप में मेरी प्रतिक्रिया;

 (1)
सरचालकों की योजना ,
दिखती होती कामयाब ,
अब जिनके मुंह में राम ,
और बगल में है छुरी ,
वो स्वाहा कहेंगे,
वो स्वाहा कहेंगे,
खामोश जो बैठे हैं आज,
हा हा करेंगे,
हा हा करेंगे,
हम होम होंगे,
हम होम होंगे,
वो हवन करेंगे,
वो हवन करेंगे,


(2)
कुछ इंसानों के होंगे सर कलम,
कुछ इंसानों की देकर आहुति ,
वो स्वाहा कहेंगे,
वो स्वाहा कहेंगे,
खामोश जो बैठे हैं आज,
हा हा करेंगे ..                      
हा हा करेंगे..,
हम होम होंगे,
हम होम होंगे,
वो हवन करेंगे,
वो हवन करेंगे,


(3)
जिन्हें नहीं बना कभी,
बिच्छू का जहर उतारते,
कुछ सिरफिरे सांप का पिटारा
उन्हें नजर करेंगे,
खामोश जो बैठे हैं आज,
हा हा करेंगे..
हा हा करेंगे..
बीन बजाते वो सिरफिरे,
होकर आल्हादित,
आहा करेंगे..
आहा करेंगे ..
हम होम होंगे,
हम होम होंगे,
वो हवन करेंगे,
वो हवन करेंगे,

अरुण कान्त शुक्ला,
17 सितम्बर, 2013  



Tuesday, September 10, 2013

ये जिगरा वालों का खेल है...



ये जिगरा वालों का खेल है..

जिन्दगी नहीं,
बीपी, सुगर, आईटेस्ट या एंजियोप्लास्टी कराने का नाम,
ये जिगरा वालों का खेल है,
जो जीते हैं इसे,
सर उठाकर स्वाभिमान और सम्मान के नाम,

कभी नहीं झुकता,
जिनका सर कभी,
बेईमानी,झूठ और अन्याय के सामने,
ठुकरा देते हैं जो सभी प्रलोभन,
नहीं फैलाते हाथ अपने,
नहीं माँगते कभी भीख हो या दान,

जिनका विवेक हमेशा रहता ज़िंदा,
बुद्धि जिनकी होती भीरुता से दूर,
नहीं होती पद की लोलुपता उनमें,
रहते हमेशा चापलूसी से दूर,
सच से रखते हमेशा नाता,
झूठे का करते हमेशा मुंह काला,

हो कितना भी दबाव,
या ज़िंदगी पर लग जाए कोई भी दांव,
नहीं करते गुमराह कभी किसी को,
मित्र हों, परिवारजन या हों कर्मचारी,
सडक हो या उनका घर,
या हो कार्यालय का द्वार
उनके संभाषण में नहीं होता,
लेशमात्र भी झूठ का सार,

ज़िंदगी नहीं,
बीपी, सुगर, आईटेस्ट या एंजियोप्लास्टी कराने का नाम,
ये ज़िगरा वालों का खेल है,
जो जीते हैं इसे,
सर उठाकर स्वाभिमान और सम्मान के नाम,

अरुण कान्त शुक्ला,
7 सितम्बर, 2013