Monday, August 5, 2013

उस किताब के पन्ने अब पलटने लगे हैं ..


उस किताब के पन्ने अब पलटने लगे हैं,
राज उनके अब खुलने लगे हैं,

हवाओं को तो एक दिन थमना ही था,
अफवाहों के सच अब खुलने लगे हैं,

झूठों के महल तो एक दिन ढलना ही थे,
अब तेरे बंगले के राज खुलने लगे हैं,

तू कितना भी तान ले गले की नसें, चुचुहा ले कितना भी पसीना,
तेरे बोल ही अब तेरी पोल खोलने लगे हैं,

तुमने नहीं दिया हिसाब लाखों का,
लोग अब पाई पाई का हिसाब खोलने में लगे हैं,


अरुण कान्त शुक्ला
05/08/2013

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2 comments:

  1. कर्म की बडी महिमा है, श्रुतियों ने सर्वतोभावेन कर्म की महिमा को गाया है । मनुष्य जब देह छोड कर जाता है तो उसके साथ केवल एक ही चीज़ जाती है वह है उसका कर्म । यहॉं एक बात विचारणीय है कि शारीरिक कर्म की महत्ता उतनी नहीं है जितनी मानसिक कर्म की अर्थात् यदि हम किसी की सेवा कर रहे हैं और मन में गाली दे रहे हैं तो हमें पुण्य नहीं मिलेगा अपितु हम पाप के भागी ही बनेंगे। प्रशंसनीय प्रस्तुति ।

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  2. आपको बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शकुन्तला जी..

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