Friday, April 19, 2013

मित्र विजय की स्मृति में ..



मित्र विजय की स्मृति में ..

ये किताब भी बड़ी अजीब है दोस्त,
जो बात किसी से कह नहीं सकते,
इसमें लिखी जाती है,
लिख दिया आज फिर इसमें,
ऐसा कुछ खास था तुम में,
की याद तुम्हारी नहीं जाती है,

वक्त के समुन्दर में,
तुम्हारे साथ बिताये लम्हें,
दिल के किनारों से टकराते रहते हैं,
जब गुमसुम होता हूँ ,
तो फौलाद से बाजू खड़े हो जाते हैं,
गुदगुदाते हैं, हंसाते हैं,
बहुत मुश्किल से तुमसे दोस्त बनते हैं,
की याद तुम्हारी नहीं जाती है,

अरुण कान्त शुक्ला
12 अप्रेल 2013

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