Friday, August 17, 2012

बस वक्त तो मेरा आने दो ..


बस वक्त तो मेरा आने दो     

अंधियारों से न खौफ खाओ, बस इस वक्त को गुजर जाने दो
रोशन होगी सुबह बस्ती सारी, बस इस रात को गुजर जाने दो

तुमने तो काट लिया जंगल पूरा, बस इक शजर को रह जाने दो
न रोने का मेरा वादा है तुमसे , बस इक आखरी अश्क को बह जाने दो 

बेगार करूँगा मैं कल भी दिन भर, बस आज थोड़ा अब सुस्ताने दो
न मांगूंगा अपने लिए मैं रोटी कभी, बस बच्चे को मेरे कुछ खाने दो

न माँगा है रहम न मांगूंगा कभी, बस तेरे जुल्मों का घड़ा भर जाने दो
तू मांगेगा भी तो न करूँगा रहम कभी, बस वक्त तो मेरा आने दो

अरुण कान्त शुक्ला                                                21फरवरी, 2012       

Thursday, August 16, 2012

मठ में लग गया ताला ..


मठ में लग गया ताला

लगी थी सभा मठ में,
सब थे संत,
एक ही था फ़कीर,
एक ही था फ़कीर,
लगा चीखने लेके हाथ में अखबार,
बिल्ली आ गई, बिल्ली आ गई,
थैले से बाहर,
मची खुसर पुसर संतन के बीच,
बिल्ली तो तभी आ गई थी,
थैले से बाहर,
जब फ़कीर झोली फैलाकर,
तुमने माँगी थी भीख,
भीख माँगने वालों का है,
आज बोलबाला,
खत्म हुई सभा,
मठ में लग गया ताला,

अरुण कान्त शुक्ल
16 अगस्त 2012

Monday, August 13, 2012

हमें आजादी चाहिये --


हमें आजादी चाहिये --

चाहिये, चाहिये, चाहिये,
हमें आजादी चाहिये,
तुम्हारे गम से, तुम्हारी खुशी से,
तुम्हारे ऐश से, तुम्हारे आराम से,
तुम्हारे भोग से, तुम्हारे उपभोग से,
तुम्हारे हुक्म से, तुम्हारे हुक्मउदूली से,
तुम्हारे न्याय से, तुम्हारे अन्याय से,
तुम्हारे शोषण से, तुम्हारी दया से,
तुम्हारी नीति से, तुम्हारी अनीति से,
तुम्हारे वादों से, तुम्हारे धोखों से,
तुम्हारे सपनों से, तुम्हारे कुचक्रों से,
चाहिये, चाहिये, चाहिये,
तुमसे आजादी चाहिये,
हमें आजादी चाहिये,
तुम्हारी हर बात से आजादी चाहिये,    

तुमसे, तुम्हारी छाया से,
तुमसे, तुम्हारी चाकरी से,
तुमसे, तुम्हारे प्रेम से,
तुमसे, तुम्हारी नफ़रत से,
चाहिये, चाहिये, चाहिये,
तुमसे आजादी चाहिये,
हमें आजादी चाहिये,
तुम्हारी हर बात से आजादी चाहिये,

तुम एक प्रतिशत भी नहीं,
हम निन्यानवे प्रतिशत हैं,
तुम वतनखोरों के चंगुल से,
मुल्क को आजादी चाहिये,
क्योंकि हम मुल्क हैं,k
है वतन मुल्क हमारा,
मुल्क को भी बेच कर मुनाफ़ा कमाने वालो,
दुनिया में नहीं कोई वतन तुम्हारा,
तुमसे चाहिये,
चाहिये, चाहिये, चाहिये,
तुमसे आजादी चाहिये,
हमें आजादी चाहिये,
तुम्हारी हर बात से आजादी चाहिये,  
हमें आजादी चाहिये,

अरुण कान्त शुक्ला
14 अगस्त, 2012  

Friday, August 10, 2012

बहिष्कृत..


बहिष्कृत

मेरी मानो,
तुम अपने सत्य को कुछ ऊंचे पर खड़े होकर,
जोर जोर से चिल्लाओ,
भीड़ रुक जायेगी,
शोर थम जाएगा,
लोगों को  आदत है,
वे चिल्लाकर कहे गए को ही सत्य मानते हैं,
वे ऊब चुके हैं उस सत्य से,
जो धीरे से कहा जाता है,
जिसके पीछे कोई ताकत नहीं,
सत्ता की, साधन की, धन की,    
वे तुम्हारी बात को सत्य मान लेंगे,
मैं,
मुझसे न डरो,
मैं किसी से नहीं कह पाऊँगा,
तुम झूठ बोल रहे हो ,
क्योंकि सत्य के माफिक,
मैं भी बहिष्कृत हूँ ,
तुम्हारे समाज से ,

अरुण कान्त शुक्ला
8अगस्त,2012

Wednesday, August 8, 2012

राधा मायूस है ..!


राधा मायूस है ..!

उन्होंने बताया,
जब आप अनशन पर होते हैं,
तब पता चलता है,
भूख क्या होती है,
आपका पेट आपसे बात करता है,
आपके हाथ,आपके पाँव,आपसे बात करते हैं,
उन्होंने नहीं बताया कि,
आपका दिमाग आपसे निगोशिएट करता है,
कहता है,
छोड़ो ये अनशन और राजनीति में आ जाओ,
संसद में सबसीडी में बढ़िया खाना मिलता है,
रहने को बढ़िया बंगला,
और आने जाने का भत्ता मिलता है,
बहुत भूखे रह लिए पूरे नौ दिन,
छोड़ो अनशन, अब बंसी बजाओ,
राधा को तो अब नाचना ही है,
संसद में आओ,
राधा को नचाओ,
वो बलिदान करने बैठे थे,
दिमाग की बात मान ली,
अनशन का बलिदान हो गया,
राजनीति में आने का ऐलान हो गया,
नौ मन तेल हो गया,
राधा मायूस है,
उसे अब नाचना जो है,

अरुण कान्त शुक्ला 
(8 अगस्त, २०१२)

Tuesday, August 7, 2012

हमारे हिस्से ..!


हमारे हिस्से..!

जिन्हें दिख रहीं हैं आज सारी गडबडियां,
दौलत उनके पास भरमार है,
सारे चने उनके हैं,
हमारी तो केवल भाड़,

कालाधन/मंहगाई,भुखमरी/भ्रष्टाचार, ढेर सारी हैं सीढियां,
हाथ में झंडे लिए वो चढ़ने हैं तैयार,
नारे सारे उनके हैं,
हमारी तो केवल आड़,

चार बांस, चौबीस गज, ता ऊपर हैं रंगरेलियां,
मंहगे जीवन, मंहगी मौतें, धरा पर भरमार,
सबसीडी सारी उनको है,
हमें तो केवल झाड़,

उनके सब रंगों में हैं रंगीनियाँ ,
फीके पड़ गए हैं हमारे त्यौहार,
उनके हिस्से चली गईं हैं सारी खुशियाँ,
कहे आदित्य”, रोओ धाड़ मार,                                                   

अरुण कान्त शुक्ला 
 7 अगस्त,2012